एक बार फिर वही नीच हरकत की गई लेकिन हम इसके पूरी तरह आदी हो चुके हैं

क्या इससे और ज़्यादा गिर सकता है इन्सान?

आपात प्रज्ञा आपात प्रज्ञा
जुलाई 13, 2018
चंद्रकांति. फोटो क्रेडिट- ऑडनारी/मोहम्मद सुफ़यान

उड़ीसा के कानून एवं न्याय मंत्री श्री प्रताप जेना ने निर्भया रेप केस पर आए फैसले पर बयान दिया कि ये बिल्कुल सही कदम है. उन्होंने कहा कि रेपिस्ट्स के साथ ऐसा ही होना चाहिये. बिल्कुल सर, किसी की बिना मर्ज़ी, उसके साथ ज़्यादती करने वाले को सज़ा मिलनी ही चाहिए. (सज़ा क्या हो, इस बात पर सबके व्यक्तिगत विचार हो सकते हैं.)

एक तरफ़ तो कानून मंत्री का ये बयान सामने आया है. दूसरी तरफ़ 12 जुलाई 2018 को उड़ीसा के खोड़दा जिले से एक महिला का वीडियो सामने आया है. इस वीडियो में दिख रही महिला चंद्रकांति बुरी तरह से जल चुकी हैं. वो अस्पताल में भर्ती हैं और उनकी छोटी बहन हादसे के बारे में पूछ रही हैं. बहन पूछती हैं - ‘तुमको किसने जलाया?’ इस पर चंद्रकांति कहती हैं - ‘मेरे पति और सास-ससुर ने मुझे जलाया है. मेरे ससुर ने मेरे ऊपर कैरोसीन का तेल डाला. मेरी सास ने मुझे पकड़े रखा. फिर तीनों ने मिलकर मुझे जला डाला.’

दहेज़ के लिए एक महिला को जलाकर मार डाला. जब हम इस घटना के बारे में सुनेंगे तो हमें दुख भी न हो. वो क्या है न कि हम इस जुमले (‘दहेज़ के लिए जलाना’ जुमला ही हो गया है) को सुनने के इतने आदि हो चुके हैं कि हमारे लिए इतनी भयावह घटना भी सामान्य हो गई है. हम सबने बचपन से न जाने कितनी बार इस तरह की घटनाओं के बारे में सुना है. कभी किसी महिला को दहेज़ की लिए प्रताड़ित किया जाता है तो कभी उसे मार दिया जाता है.

भारत में शादी को पवित्रता के दायरों में बांध दिया है. इस पवित्रता में औरत के साथ कितनी भी गंदी हरकतें क्यों न हो जाएं उसे इसी में रहना पड़ता है. जब कोई लड़की अपने मायके में ये बताती है कि उसे ससुराल में परेशान किया जा रहा है तो उसे पुलिस में शिकायत करने या कोई कार्रवाई करने की सलाह नहीं दी जाती बल्कि उसे समझौता करने को कहा जाता है. ‘बेटा हर शादी में थोड़ी-बहुत दिक्कत तो होती ही है. तुम लड़की हो, तुम ही थोड़ा संभल कर चलो. हर रिश्ते में समझौते तो करने ही पड़ते हैं.’ ये थोड़ी-बहुत दिक्कत कब बड़ी बन जाती हैं किसी को पता नहीं चलता. फिर या तो महिला परेशान होकर कार्रवाई करने को मजबूर हो जाती है. वरना उसके ससुराल वाले उसे मार डालते हैं.

किसी के साथ हर रोज़ मार-पीट करना, पैसों के लिए उसे प्रताड़ित करना, उसे जान से मार देना, ज़िंदा जला देना ये सब जघन्य अपराध हैं. लेकिन ये अपराध हमारे लिए सामान्य हैं. हम एक कान से सुनते हैं, दूसरे से निकाल देते हैं. हमारी संवेदनाएं मर चुकी हैं पर इन घटनाओं के बारे में जानना ज़रूरी है. ज़रूरी है कि हम इन्सान की जान की कीमत पहचानें और उसके ज़िंदा रहते ही उसे बचा लिया जाए.

चंद्रकांति को उनके माता-पिता नहीं बचा पाए. 10 जुलाई को हुए हादसे में वो पूरी तरह जल गईं. उनसे ठीक से बोला भी नहीं जा रहा था. अपनी बहन के पूछने पर वो बस किसी तरह जवाब दे रही हैं. चंद्रकांति लगातार ये कहती जा रही थीं - ‘मैं बच नहीं पाऊंगी. मैं मर जाऊंगी.’

'मैं मर जाऊंगी' - चंद्रकांति. फोटो क्रेडिट- ऑडनारी/मोहम्मद सुफ़यान 'मैं मर जाऊंगी' - चंद्रकांति. फोटो क्रेडिट- ऑडनारी/मोहम्मद सुफ़यान

हुआ भी वही. वो मर गईं. चंद्रकांति की एक सात साल की बेटी है और एक दो साल का बेटा. दोनों बच्चे अभी उनके ससुराल वालों के साथ ही हैं. इस दौरान मेरे दिमाग में लगातार ये सवाल उठ रहा है कि जो लोग पैसों के लिए एक जीते-जागते इन्सान को मार सकते हैं वो उन बच्चों के साथ पता नहीं क्या करेंगे.

इस घटना की जानकारी हमें संवाददाता मोहम्मद सुफ़यान ने दी. उन्होंने बताया कि चंद्रकांति की शादी को लगभग नौ साल हो चुके थे. शादी के समय उनके ससुराल वालों ने दहेज़ के नाम पर 50,000 रुपए और एक मोटरसाइकल मांगी. चंद्रकांति के पिता ने 20,000 रुपए का इंतज़ाम तो किसी तरह कर लिया पर उससे अधिक दहेज़ वो नहीं दे सके. नकदी के साथ सोने के जेवर भी उन्होंने दिए लेकिन फिर भी लड़के के परिवार वाले उनसे नाराज़ ही चल रहे थे.

शादी के बाद लगातार चंद्रकांति के ससुराल वाले उसे परेशान कर रहे थे. चंद्रकांति को हर रोज़ प्रताड़ना सहनी पड़ रही थी. चंद्रकांति को जिस दिन जलाया गया उसके एक दिन पहले उन्हें पीटा गया और खाना नहीं दिया. जब खुद चंद्रकांति को जला दिया तब भी उनके पति और सास-ससुर को बुरा नहीं लगा. इसके बाद उन लोगों ने जो किया वो बताता है कि चंद्रकांति के ससुराल वाले किस घटिया मानसिकता के लोग थे. उन्होंने चंद्रकांति के घर फोन कर के बताया कि वो खाना बनाते हुए जल गई हैं और इलाज के नाम पर 20,000 रुपयों की डिमांड की.

चंद्रकांति के मां-बाप ने उन्हें भुवनेश्वर के एसयूएम अस्पताल में भर्ती कराया. यहीं वो भयावह वीडियो उनकी छोटी बहन ने मोबाइल पर बना लिया. दो दिन तक चंद्रकांति का इलाज चला लेकिन वो नहीं बच पाईं.

इस पूरे मामले की शिकायत दर्ज़ करवाई जा चुकी है. खोड़दा जिले के एसपी दीप्ती रंजन ने कहा है -

‘हमने चंद्रकांति के घर पर पुलिस को भेजा था. उनके घर पर ताला लगा मिला. चंद्रकांति के पति और सास-ससुर गायब हैं. उनके बच्चे भी उन्हीं लोगों के साथ हैं. हम उन सभी को जल्दी ही ढूंढ निकालेंगे. साथ ही हम ये सुनिश्चित करेंगे कि उनके खिलाफ सख़्त से सख़्त कार्रवाई हो. हमने महिला पुलिस को भी इस मामले की सूचना दे दी है. पीड़ित चंद्रकांति के शरीर को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है.’   

इसके एक दिन पहले ही उत्तर प्रदेश की रज़िया की मौत अपने पति के अत्याचारों के कारण हो गई थी. दोनों ही पीड़ितों को दहेज़ के लिए परेशान किया जा रहा था. एक को महीने भर भूखे-प्यासे कैदी बनाकर रख उसके मरने का सारा इंतज़ाम कर दिया तो दूसरे को खुद अपने हाथों से आग लगा दी. ये पैसों का लालच और न जाने कितनी जानें लेगा? दहेज़ आज भी सिर्फ़ कानून की किताबों में ही गैर-कानूनी मालूम पड़ता है.   

इस घटना के बाद ऐसा लगता है कि रमाशंकर यादव विद्रोही की ये कविता सबको सुनायी जानी चाहिए. जब भी कोई नयी दुकान खोलता है तो पैम्फ्लेट बंटवाता है. उसी तरह सरकार को इस कविता का पैम्फ्लेट बनवाकर अखबारों में बंटवाना चाहिए-

‘कुछ औरतों ने अपनी इच्छा से कूदकर जान दी थी

ऐसा पुलिस के रिकॉर्ड में दर्ज है

और कुछ औरतें अपनी इच्छा से चिता में जलकर मरी थीं

ऐसा धर्म की किताबों में लिखा हुआ है 

मैं कवि हूँ, कर्त्ता हूँ

क्या जल्दी है

मैं एक दिन पुलिस और पुरोहित दोनों को एक साथ

औरतों की अदालत में तलब करूँगा

और बीच की सारी अदालतों को मंसूख कर दूँगा

मैं उन दावों को भी मंसूख कर दूंगा

जो श्रीमानों ने औरतों और बच्चों के खिलाफ पेश किए हैं

मैं उन डिक्रियों को भी निरस्त कर दूंगा

जिन्हें लेकर फ़ौजें और तुलबा चलते हैं

मैं उन वसीयतों को खारिज कर दूंगा

जो दुर्बलों ने भुजबलों के नाम की होंगी.

मैं उन औरतों को

जो अपनी इच्छा से कुएं में कूदकर और चिता में जलकर मरी हैं

फिर से ज़िंदा करूँगा

और उनके बयानात

दोबारा कलमबंद करूँगा

कि कहीं कुछ छूट तो नहीं गया?

कहीं कुछ बाक़ी तो नहीं रह गया?

कि कहीं कोई भूल तो नहीं हुई?

क्योंकि मैं उस औरत के बारे में जानता हूँ

जो अपने सात बित्ते की देह को एक बित्ते के आंगन में

ता-जिंदगी समोए रही और कभी बाहर झाँका तक नहीं

और जब बाहर निकली तो वह कहीं उसकी लाश निकली

जो खुले में पसर गयी है माँ मेदिनी की तरह

औरत की लाश धरती माता की तरह होती है

जो खुले में फैल जाती है थानों से लेकर अदालतों तक

मैं देख रहा हूँ कि जुल्म के सारे सबूतों को मिटाया जा रहा है

चंदन चर्चित मस्तक को उठाए हुए पुरोहित और तमगों से लैस

सीना फुलाए हुए सिपाही महाराज की जय बोल रहे हैं.

वे महाराज जो मर चुके हैं

महारानियाँ जो अपने सती होने का इंतजाम कर रही हैं

और जब महारानियाँ नहीं रहेंगी तो नौकरानियां क्या करेंगी?

इसलिए वे भी तैयारियाँ कर रही हैं.

मुझे महारानियों से ज़्यादा चिंता नौकरानियों की होती है

जिनके पति ज़िंदा हैं और रो रहे हैं

कितना ख़राब लगता है एक औरत को अपने रोते हुए पति को छोड़कर मरना

जबकि मर्दों को रोती हुई स्त्री को मारना भी बुरा नहीं लगता 

औरतें रोती जाती हैं, मरद मारते जाते हैं

औरतें रोती हैं, मरद और मारते हैं

औरतें ख़ूब ज़ोर से रोती हैं

मरद इतनी जोर से मारते हैं कि वे मर जाती हैं 

इतिहास में वह पहली औरत कौन थी

जिसे सबसे पहले जलाया गया?

मैं नहीं जानता

लेकिन जो भी रही हो मेरी माँ रही होगी,

मेरी चिंता यह है कि भविष्य में वह आखिरी स्त्री कौन होगी

जिसे सबसे अंत में जलाया जाएगा?

मैं नहीं जानता

लेकिन जो भी होगी मेरी बेटी होगी

और यह मैं नहीं होने दूंगा.’

 

 

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