लिपस्टिक लगाने पर भाई को चिढ़ा रहे थे लोग, बहन ने सबकी बोलती बंद कर दी

चलिए, अब कुछ परिभाषाओं को पीछे छोड़ दें.

अपने छोटे भाई के साथ सबने लिपस्टिक लगाई. फोटो क्रेडिट: Diksha Bijlani/facebook

'जेंडर कुछ नहीं होता. कल मैंने और भैया दोनों ने रेड लिपस्टिक लगाया था, दीदी के साथ. आप पूछ लो.'

9 साल के कूज़ ने ये बात तब कही जब वो अपनी बहन की पिंक कलर की साइकिल चलाने जा रहा था. और पिंक साइकिल की वजह से उसे चिढ़ाया गया.

कूज़ जिसे परिवार से लेकर दोस्त तक सिर्फ इसलिए चिढ़ाते थे, उसका मज़ाक उड़ाते थे क्योंकि उसे लिपस्टिक लगाना, नेल पॉलिश करना, स्कर्ट पहनना पसंद है. ये चीज़े तो लड़कियों को पसंद होती हैं, इसलिए कूज़ सबकी नज़र में उपहास का केंद्र बना. लेकिन अब कूज़ इनके मज़ाक की वजह नहीं बनेगा. वो हर काम पूरे कॉन्फिडेंस से करेगा, जो वो करना चाहता है...

ये इसलिए संभव हो सका है क्योंकि कूज़ के कज़न ने उसका साथ दिया. उसे महसूस कराया कि उसे अपनी इच्छाएं दबाने की जरूरत नहीं है. उसकी अपनी पहचान है, जो मर्दाना या जनाना कैटगरी से ऊपर है.

अब कूज़ अपनी फेवरेट लिपस्टिक शेड और नेल पॉलिश बिना डरे लगाता है. फोटो क्रेडिट: Diksha Bijlani/facebook अब कूज़ अपनी फेवरेट लिपस्टिक शेड और नेल पॉलिश बिना डरे लगाता है. फोटो क्रेडिट: Diksha Bijlani/facebook

इसी 18 जून की बात है. जब कूज़ ने लिपस्टिक लगाई. बस फिर क्या था, उसको छक्का कहा गया, मज़ाक बनने लगा. इसलिए वो पर्दे के पीछे या बिस्तर पर जाकर छिपने लगा ताकि उसकी मां उसे न देख सकें.

फिर कूज़ के भाई-बहनों ने जो किया उसे हम एक क्रांति की शुरुआत कह सकते हैं. जेंडर-न्यूट्रेलिटी को समर्थन देने का आगाज़ कह सकते हैं.

फोटो क्रेडिट: Diksha Bijlani/facebook फोटो क्रेडिट: Diksha Bijlani/facebook

कूज़ की कज़न दीक्षा बिजलानी, उनके भाई गीत बिजलानी, साथ में एक और बहन ने लिपस्टिक लगाई. फिर उसे बुलाया. दीक्षा के भाई को लिपस्टिक लगाया देख कूज़ को बेहतर फील हुआ.

फोटो क्रेडिट: Diksha Bijlani/facebook फोटो क्रेडिट: Diksha Bijlani/facebook

दीक्षा अपने फेसबुक पोस्ट पर बताती हैं कि उनके भाई ने तमामा मर्दाना परिभाषाओं को छोड़ कूज़ को सहज किया. दीक्षा लिखती हैं, 'हमें ये समझना चाहिए, ये हमारी जिम्मेदारी है कि हर बच्चे को स्त्री और पुरुष इन दो जेंडर की परिभाषा में जबरन ढालने की कोशिश न करें. बल्कि उन्हें एक सुरक्षित माहौल दें, जहां वो खुद को खोए बिना अपनी पहचान बना सकें.'

ये इस परिवार का स्टैंड है कि अब कूज़ अपनी अपनी पसंद का हर वो काम कर रहा है, जिसे आमतौर पर हमारे समाज में पूरी तरह से नकार दिया जाता है. सिर्फ इसीलिए क्योंकि हमने ज्यादातर चीजों को सिर्फ दो जेंडर के इर्द-गिर्द ही वगीकृत कर रखा है. इसीलिए जब कूज़ को ये कहकर चिढ़ाया गया कि वो लड़कियों जैसे पिंक साइकिल चला रहा है, तो कूज़ ने जवाब दिया, 'जेंडर रीयल नहीं होता.'

जेंडर को सिर्फ दो या तीन कैटगरी में नहीं बांटा जा सकता. ये अपने में काफी विस्तृत है. जरूरी नहीं कि सभी उन मान्यताओं में फिट बैठें, जो पहले से तय हैं. अगर किसी के व्यक्तित्व में कुछ अलग है तो इसका मतलब ये नहीं कि वो बेकार है. सबका अपना एक अस्तित्व है और उसी के मुताबिक उन्हें उनकी पहचान बनाने की आज़ादी मिलनी चाहिए.

 

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