जब पहली बार मुझे छोटा महसूस हुआ, क्योंकि मैं सहेली की तरह जाति से 'ब्राह्मण' नहीं थी
जाति को हमने बचपन से देखा है, इन्हीं छोटे-छोटे रूपों में.
(यह ब्लॉग हमें हमारी एक 26 साल की रीडर ने भेजा है. वह छत्तीसगढ़ की रहने वाली हैं. अन्य पिछड़ा वर्ग से आती हैं. बेंगलुरु में रहती हैं और एमएनसी में काम करती हैं. उनकी निजता का सम्मान करते हुए हम उनका नाम जाहिर नहीं कर रहे हैं.)
आर्टिकल 15 पर सब लोग बात कर रहे हैं. सब लोग बोल रहे हैं कि ये फिल्म ब्राह्मणों को बुरा दिखा रही है. कई लोग ये भी बोल रहे हैं कि जातिवाद खत्म हो गया है. हर कोई बराबर है. शहरों में थोड़ा बहुत ऐसा है भी. मैं जिस घर में किराए पर रहती हूं, जिस ऑफिस में काम करती हूं वहां किसी को फर्क नहीं पड़ता कि मैं किस कास्ट की हूं. लेकिन गांव में तो अभी भी अलग-अलग जाति के लोग एक दूसरे से अलग ही रहते हैं.
मैं ओबीसी हूं तो कभी भी कास्ट को लेकर मेरे साथ भेदभाव नहीं हुआ. लेकिन बचपन से मुझे बताया गया कि ब्राह्मणों का आशीर्वाद लेना चाहिए. उनके पांव छूने चाहिए. घर में कोई पूजा के लिए कोई पंडित जी आते थे तो हम लोग उनके पैर भी छूते हैं.
नॉर्थ इंडिया में लड़कियों से पैर नहीं छुआने और उनके पैर छूने का कल्चर है. लेकिन हमारे यहां पर ऐसा नहीं है. वहां पर जो उम्र में छोटा होता है, वो बड़ों के पांव छूता है. चाहे लड़की हो या लड़का. लेकिन बचपन में एक बात ऐसी हुई थी जो अब तक मुझे डिस्टर्ब करती है. वो पहली बार था जब मुझे अहसास कराया गया था कि मैं किसी से कम हूं, क्योंकि मेरी जाति उससे छोटी मानी जाती है.
मैं 10-11 साल की थी. पापा के डिपार्टमेंट में एक अंकल ट्रांसफर होकर आए थे. उनकी एक बेटी थी. उम्र में मुझसे 2-3 महीने छोटी. हम दोनों की जल्दी दोस्ती हो गई. एक ही कॉलोनी में रहते थे, स्कूल अलग-अलग थे. मैं अपने क्लास की अच्छी स्टूडेंट्स में से एक थी लेकिन वो पढ़ाई में कमजोर थी.
सांकेतिक फोटो. कर्टसी- Pixabay
एक दिन शाम को वो मेरे घर आई. मेरी मम्मी ने उसके पैर छू लिए. ये मेरे लिए बिल्कुल अजीब और नया था. नवरात्रि में कन्या भोज के अलावा मैंने कभी ऐसा नहीं देखा था. मैंने मम्मी से पूछा तो उन्होंने कहा- बामन लड़की है. उसके आशीष से तर जाएंगे.
मुझे बुरा लगा बहुत. कि जो लड़की मुझसे भी छोटी है. पढ़ाई में कमजोर है. मेरी ही तरह घर से अचार चुराकर खाती है. अपनी मम्मी से झूठ बोलती है. मुझसे बात-बात पे लड़ाई करती है, जिद करके सिर्फ अपनी ही बात मनवाती है, वो मेरी मम्मी से भी बड़ी कैसे हो गई? इतनी बड़ी कि मेरी मम्मी उसके पैर छुएगी? कि उसके आशीर्वाद के बिना मम्मी का काम नहीं चलेगा.
मैं बहुत गुस्सा हुई थी. रोई भी थी. मम्मी से खूब लड़ी. इतना कि खाना नहीं खाया. मेरे लिए वो किसी झटके से कम नहीं था. उसके बाद पता नहीं क्या हुआ, मेरी मम्मी ने कभी मेरे किसी भी दोस्त के पांव नहीं छुए. मेरी सामने कभी ये बात नहीं की कि ब्राह्मणों के बच्चे भी हमसे बड़े होते हैं.
मैं आज कितने लोगों के साथ उठती-बैठती हूं. बिना ये जाने कि वो लोग किस कास्ट के हैं. लेकिन जब भी कोई ब्राह्मणवाद की बात करता है तो वो घटना मेरे दिमाग में घूम जाती है. मैं ज्यादा मेहनत करती हूं ताकि कोई मुझे किसी और से कम महसूस न कराए. कभी भी.
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