प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ में संतुलन बैठाती एक मां की कहानी
'आपको वर्क लाइफ बैलेंस बैठाते देखकर ही बच्चा सीखता है.'
(ये ब्लॉग गीतिका गंजू धर ने लिखा है. वह पेशे से टीवी होस्ट हैं. मेरी सहेली, चित्रहार जैसे कई कार्यक्रम होस्ट कर चुकी हैं. और 8 साल की एक बेटी की मां हैं.)
मैं काम इसलिए नहीं करती कि अपने लिए रोटी जुटा सकूं. पहले मैं ऐसा करती थी,लेकिन अब ये बात नहीं है...और इसीलिए,पिछले कुछ दिनों से मैं सोचने की कोशिश करती हूं कि अगर मेरे पास करियर न होता तो क्या होता? क्या ज़िंदगी ऐसी ही होती?जितनी आसान लगती है, उतनी ही रहती? नहीं, जो औरतें काम नहीं कर रही हैं,उनको भी चुनौतियों से जूझना पड़ता है. उनका भी दिन गुजरता है,लेकिन एक बात मैं ज़रूर कहना चाहूंगी कि ऐसी महिलाओं के पास कुछ करने के लिए ज्यादा वक्त है,जो कि एक तरह से अनोखी ब्लेसिंग है. मेरी तड़पती हुई इच्छाएं मुझे इसी ओर ले जाती हैं.
मेरे पास वक्त नहीं था कि मैं बच्चों के साथ खेल सकूं, लेकिन अब एक कामकाजी मां के रूप में मैं अनोखे संसार में हूं,वो भी अपने पैसों के साथ. मेरी बेटी,जो अब आठ साल की है,मेरे काम को लेकर खुश है और लगातार बताती है कि उसे मुझ पर कितना गर्व है. मैंने खुद से कहा- आठ साल का एक बच्चा क्या समझता है? उस लम्हे का आनंद लिया और आगे बढ़ गई, लेकिन फिर अगर आप उस पल में रुकते हैं, गहरे डूबकर सोचते हैं तो देखते हैं कि आपका बच्चा आपको देख रहा है,काम करते हुए और वर्क-लाइफ बैंलेंस बिठाने की कोशिश करते हुए.
पेशे से टीवी होस्ट हैं गीतिका
बच्चे आप जो कुछ हैं, उससे ज्यादा सीखते हैं, उससे भी ज्यादा जो आप उन्हें सिखाते हैं. इसलिए मुझे ये सोचकर खुशी होती है कि मैं अपना काम जिस तरह करती हूं, उस तरीके को मेरा बच्चा देखता-समझता है. मुझे ये जानकर खुशी होती है कि जब उसका वक्त आएगा तो वो प्रोफेशनल होने के महत्व,कड़ी मेहनत के महत्व और उपलब्धि हासिल करने की खुशी को भी जान सकेगा. एक अभिभावक के रूप में मेरा एक बड़ा काम हो रहा है, बाकी की चीजें मैं देख लूंगी.
तो क्या ये सब आसान है? जवाब है - नहीं. ये सब कुछ आपके अंदर से बहुत कुछ बाहर निकाल लेता है. खासतौर पर तब, जब आप सब कुछ ठीक तरीके से करना चाहें. मैं एक व्यावहारिक मां हूं. स्कूल और हॉबी क्लास के बीच उसे ले आते और छोड़ते, उसकी पढ़ाई में मदद करते हुए, बोर्ड गेम खेलते, बहुत बार उसके लिए खाना बनाते हुए, जब वो स्विमिंग सीख रही होती है, तब पानी की नीली बूंदों के साथ छपाक करते हुए उसे देखती हूं. सोते वक्त मैं जितना हो सके, उसे निहारती हूं और कोशिश करती हूं कि उसकी ज़िंदगी के हर दिन सुबह सबसे पहले गुड मॉर्निंग कहूं.
जिया के साथ गीतिका
मां होना एक मुश्किल काम है. एक प्रोफेशनल एंकर होना भी मुश्किल काम है. कोई भी आपको आपके काम से एक इंच हटा नहीं सकता. हाथी दांत जैसा कोई काम नहीं है. ज्यादातर कामकाजी माएं प्राउड प्रोफेशनल हैं, जो किसी तरह की छूट नहीं चाहतीं. एक एंकर के रूप में मेरा काम पूरी तरह कंटेंट पर आधारित है. ये घास पर घूमने, एक अच्छी ड्रेस पहन लेने और काम पर चले जाने जैसी चीज़ नहीं है. नतीजा ये होता है कि मैं कई घंटों तक काम करती हूं और बाकी बचा हुआ सारा वक्त लिखती और पढ़ती हूं. ये आसान नहीं है. इसमें बहुत वक्त लगता है. बहुत मुश्किल से मैं फुर्सत का वक्त जुटा पाती हूं, लेकिन सबसे अहम बात मैं इन सबके बीच चलना सीख रही हूं. ये जानना भी कि क्या बहुत ज़रूरी है, क्या आवश्यक नहीं है और कौन-सी चीज़ें करनी बिल्कुल भअहम नहीं हैं. मैं अपने लक्ष्य तक ज़रूर पहुंचूंगी. इसके साथ ये भी महसूस किया है कि अच्छा भोजन कर, ध्यान लगाकर फिट और सेहतमंद रहना बहुत ज़रूरी है, ताकि ज़़िंदगी की गाड़ी चलती रहे और वहां तक ले जा सके, जहां आप पहुंचना चाहती हैं.
बस, आपका सपोर्ट सिस्टम थोड़ा और कुशल और प्रभावी होना चाहिए. अब, मैं अपनी पूरी क्षमता के साथ Giaa की देखभाल करने की कोशिश कर रही हूं. ठीक उस औरत की तरह, जो कंस्ट्रक्शन साइट पर अपनी बेटी को पीठ पर बांधकर ईंटें तोड़ती है या फिर उस महिला की तरह, जो स्टेज पर आकर अपनी बात रखती है. ये दुनिया के सामाजिक ढांचे में एक स्थायी बदलाव है. कौन जानता है कि अब से कुछ साल बाद, ये कॉलम एक परफेक्ट पिता के बारे में हो. उस दिन मैं एक मुस्कान के साथ पीछे बैठकर कहूंगी - मांओं, हमने कर दिखाया. हमने अपने बेटे-बेटियों के लिए दुनिया बदल दी.
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