शरद त्रिपाठी और राकेश बघेल के बीच जूतम-पैजार के अलावा एक और चीज हुई, जिसपर आपने ध्यान नहीं दिया

दोनों ने असली मर्द होने की परंपरा निभाई है

कल से एक विडियो वायरल हो रहा है. इसमें भाजपा के सांसद शरद त्रिपाठी ने भाजपा विधायक राकेश बघेल को जूतों से मारा है. बहस हुई थी शिलापट्ट पर नाम नहीं होने के मामले पर. इस विडियो में देखा जा सकता है किस तरह बहसबाजी शुरू हुई. उसके बाद शरद त्रिपाठी ने जूता निकाल लिया और दे दनादन राकेश बघेल पर दे मारा. कुछ पल के लिए लोग हक्के-बक्के रह गए. फिर सिक्योरिटी बीच में आई और इन दोनों को अलग-थलग किया गया. लेकिन फिर भी एक दूसरे को गालियां देने का सिलसिला अनवरत जारी रहा. यहां विडियो में गालियां बीप कर दी गई हैं. लेकिन वहां जो हुआ, उसमें मां बहन की गालियों की भरमार थी. दोनों तरफ से थोक के भाव में एक दूसरे के परिवार की महिलाओं से सम्बन्ध जोड़े जा रहे थे.

सुन न पाए हों तो ये पढ़ लीजिए:

सांसद - किसी गाइडलाइन में है?

विधायक - ऐसा है, उसमें हमसे बात करिए

सांसद - आप हैं. मैं फंडामेंटल राइट प्रशासक हूं

विधायक - फंडामेंटल राइट तो बात कर लीजिएगा

सांसद - आपसे क्यों बात करेंगे

विधायक - क्यों नहीं बात करेंगे

सांसद - मैं ...... से बात करुंगा.

विधायक - विधायक का नाम है?

सांसद - सांसद मैं हूं. आपसे क्या बात करेंगे. दिमाग मत खराब करो. बता दे रहे हैं.

विधायक - दिमाग आप मत खराब करो

विधायक - ये क्या परंपरा है.

सांसद - अरे अभी बात करेंगे

अन्य - ये ठीक नहीं है

सांसद - आप से क्या बात करेंगे जी?

विधायक - ठीक कर देंगे! ठीक कर देंगे! शांत रहिए!

सांसद - तुम्हारे जैसे कितने विधायक पैदा किया हूं. समझे!

विधायक - जूता निकालें क्या ?

*सांसद ने जूता निकाला*

सांसद -ए! तुम्हारी #@ # *#$$

अन्य - मार मार मार *&@##

मार! मार! मार!

हटो! हटो!

अन्य - ये सांसद है साला!

सांसद - दिमाग खराब है

सांसद - तुम्हारी @#&% ठीक कर दूंगा $#$&&@ तुम्हारे जैसे विधायक को ठीक कर दूंगा $%#*

विधायक - रुकिए न इसकी @#*&

सांसद - चमड़ों के सौदागर *&#$ दिमाग खराब है

विधायक - तुम आओ न...

सांसद - तुम रोकोगे...

विधायक - आओ आओ आओ

सांसद - अब तुम रोकोगो क्या *#@$

विधायक - अरे आओ न

सांसद - अब तक तो तुमको जो करना था कर चुके #$@*

विधायक - आओ आओ

सांसद - जितनी तुम्हारी हैसियत तुम्हारी #* #@&* %@#$

विधायक - मार देंगे *#@$ @#$ #

ये बात गारंटी के साथ लिख कर दी जा सकती है कि ये सारी गालियां देते वक़्त दोनों महानुभावों में से किसी के भी दिमाग में उक्त महिला का चेहरा नहीं होगा. बहुत संभव है कि वो नाम भी नहीं जानते हों उन महिलाओं के जिनके साथ यौन हिंसा की गालियां वो दे रहे थे. उस वक़्त जो कॉमन रह गया था वो थी हिंसा, शाब्दिक, शारीरिक, और उसे झेलने के लिए दोनों तरफ की औरतें. जिनका इस्तेमाल होता है अपनी हिंसा के लिए.

boot-3_750x500_030719034153.jpgतस्वीर: ट्विटर

साराहेवो एक जगह का नाम है. बोस्निया-हर्ज़ेगोविना की राजधानी. यूगोस्लाविया से अलग होने की घोषणा करने के बाद वहां पहाड़ टूटा था. बोस्निया के सर्बों ने बोस्नियाक मुसलमान जनता पर धावा बोल दिया था. कई साल बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस घटनाक्रम को जेनोसाइड माना गया. यानी नरसंहार. जो कि हिटलर ने ज्यूस यानी यहूदियों के साथ किया था.

किसी को नहीं पता कि इस नरसंहार के दौरान कितनी लड़कियों का यौन शोषण किया गया. लेकिन अंदाजा तकरीबन 20000 से 50000 के बीच में है. इनमें से कईयों ने तो बाद में आकर स्वीकार किया कि उनके साथ बलात्कार हुआ था. बार-बार की गई मांगों के बाद रेप को वॉर क्राइम यानी युद्ध के अपराध की श्रेणी में रखा गया. इनमें से कई औरतें अपने बलात्कारियों को रोज़ अपने आस-पास देखती हैं. वो रेपिस्ट नहीं जानते कि उनके बच्चे कहां-कहां और किससे जन्मे हैं. इनमें से कईयों ने अपने बलात्कारियों को फेसबुक पर ढूंढ निकाला है. उन्हें पता है उसके कितने बच्चे हैं, कब शादी हुई उसकी. सब कुछ.

जब विभाजन के दौरान थोआ खालसा पर हमला हुआ था, तो वहां की औरतें कुएं में कूद गई थीं. इतनी औरतें कि कुआं लाशों से पट गया था.

बोको हराम ने सैकड़ों की संख्या में औरतों और नाबालिग लड़कियों को सेक्स स्लेव बना रखा है. यजीदी औरतों पर उनका कहर सबसे ज्यादा टूटा है. और उनको छुड़ाने के लिए हर तरफ से जोर मारने में देश लगे हुए हैं. 

ये तो परदेस की बात है. आप दिल्ली के ट्रैफिक में लड़ने वाले किन्हीं दो लोगों का झगड़ा सुन लीजिए. कार से उतर कर ज़मीन पर पांव रखने से पहले मंतर की तरह पांच बार मां या बहन की गाली निकलती है लोगों के मुंह से.

हिंसा कहीं भी हो, कैसी भी हो. शिकार औरतें होती हैं. बन्दूक उनके कंधे पर रखकर चलती है. राकेश बघेल या शरद त्रिपाठी में से किसी की भी मां या बहन इस हिंसा का हिस्सा नहीं बनीं. लेकिन उन्हें घसीट लाया गया. उनके शरीरों को हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया.

boot-2_750x500_030719034225.jpgतस्वीर: ट्विटर

दुनिया का कोई भी युद्ध औरतों ने शुरू नहीं किया. पुरुषों ने किया, और अपना हक़ जताने के लिए उनकी हिंसा औरतों पर उतरी. हम नहीं कह रहे. इतिहास कह रहा है.  इस जूतम-पैजार में शरद त्रिपाठी और राकेश बघेल ने सदियों से चली आ रही हिंसा का ही एक नमूना पेश किया है. परंपरा निभाई है.

अगर सचमुच वहां इनकी माएं और बहनें वहां खड़ी खुद पर चल रही ये गालियां सुन रही होतीं, तब क्या इनकी ज़बान नहीं कटती?

 

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