बर्थडे स्पेशल: कल्की केकलां के 5 सबसे पावरफ़ुल रोल्स

फॉरेनर दिखने वाली लड़की क्या कमाल हिंदी बोल रही थी.

सरवत फ़ातिमा सरवत फ़ातिमा
जनवरी 10, 2019

2009 की बात है. 'देव डी' पिक्चर नई-नई रिलीज़ हुई थी. पिक्चर में अभय देओल, कल्कि केकलां, और माही गिल लीड रोल में थे. ये कल्कि की हिंदी सिनेमा में पहली पिक्चर थी. हर तरफ़ इस नई लड़की के चर्चे थे. फॉरेनर दिखने वाली लड़की क्या कमाल हिंदी बोल रही थी. उस साल अपनी एक्टिंग के लिए कल्कि ने अवार्ड भी जीता था. तब से लेकर आज तक, उन्होंने कई दमदार रोल्स किए. अवॉर्ड बटोरे. वाहवाही पाई. आज 10 जनवरी को उन्हीं कल्कि का बर्थडे है. इस मौके पर बात करेंगे उनकी ऐसी पांच फिल्मों की जिनमें उनके रोल सबसे यादगार या पॉवरफुल साबित हुए.

1. देव डी

लेनि उर्फ चंदा. कल्कि का किरदार. एक सेक्स MMS स्कैंडल के चलते लेनि की बड़ी बदनामी होती है. पिता सुसाइड कर लेते हैं. उसके परिवारवाले उसे एक गांव रहने के लिए भेज देते हैं. पर लेनि दिल्ली वापस आती है. उसे शर्म की ज़िन्दगी नहीं जीनी. वो एक प्रॉस्टिट्यूट बन जाती है. दिन में पढ़ाई करती है और रात में काम. ‘अंग्रेज़’ जैसी दिखती है इसलिए लोग पैसे भी ज़्यादा देते हैं. एक ऐसा काम जिसको दुनिया धिक्कार की नज़र से देखती है, लेनि को आज़ाद महसूस करवाता है.

कल्कि का ये रोल काफ़ी पॉवरफ़ुल है. ये किरदार गलतियां करता है. सामाजिक अच्छाइयों में फ़िट नहीं बैठता. पर फिर भी अपनी गलतियों का बोझ लेकर नहीं जीता. ये सबक सीखने की हम सबको कहीं न कहीं ज़रूरत है. हम गिल्ट में कई बार ऐसे डूबते हैं कि ज़िन्दगी दोबारा शुरू करना भूल जाते हैं. लेनि हमें याद दिलाती है कि बुरा हुआ तो क्या हुआ, ज़िन्दगी अभी बाकी है, उसे दूसरों के लिए नहीं अपने लिए जिओ.

2. मार्गरीटा, विद अ स्ट्रॉ

कसम से. कल्कि की सबसे बेहतरीन पिक्चर. हमारे हिसाब से. अगर नहीं देखी है तो शॉर्ट में कहानी सुन लीजिए. लैला (कल्कि) एक ऐसी टीनएजर है जिसे सेरिब्रल पॉल्सी नाम की बीमारी है, जो व्हीलचेयर से ही इधर-उधर जा पाती है. बोलने में भी दिक्कत होती है. उसे स्कॉलरशिप मिलती है तो पढ़ने के लिए न्यू यॉर्क जाती है. मां भी ख़याल रखने साथ जाती है. वहां क्रिएटिव राइटिंग की क्लास में अपने साथी जैरेड के प्रति आकर्षित होती है. फिर उसकी मुलाकात ख़ानुम से होती है जो एक्टिविस्ट है. ख़ानुम देख नहीं सकती. बाद में दोनों को प्यार हो जाता है. लैला अपनी मां से इस बारे में बात करती हैं. दोनों के रिश्ते बिगड़ते, फिर सुधरते हैं.

कल्कि ने एक डिसेबल्ड लड़की के किरदार को बहुत अच्छे से निभाया है. उससे बड़ी बात. ये पिक्चर कुछ ज़रूरी बातों का एहसास दिलाती है. हम जब भी किसी डिसेबल्ड इंसान को देखते हैं तो ज़ेहन में एक ही ख़याल आता है. हाय! बेचारी. ये चल नहीं सकती. बोल नहीं सकती. कैसे जीती होगी. ये पिक्चर लैला पर दया नहीं करती, बल्कि लैला जिंदगी से इतनी ज्यादा भरी हुई है और उसे ऐसे जीती है, जैसे बिना डिसेबिलिटी वाले इंसान भी नहीं जी पाते. इस पात्र के जरिए दर्शकों को उन सेक्शुअल नीड्स के बारे में भी बताया जाता है जिसका डिसेबिलिटी से कोई लेना देना नहीं होता. कल्कि का ये पात्र ऐसा है जैसा हिंदी सिनेमा ने पहले कभी नहीं देखा. इसका कोई मुकाबला नहीं है.

3. रिबन

ये पिक्चर 2017 में आई थी. कल्कि के साथ इसमें सुमित व्यास भी थे. वही, 'परमानेंट रूममेट्स' वाले. मेट्रो शहर में रहने वाली लड़कियां कल्कि के किरदार से ज़रूर रिलेट कर सकती हैं. भाग-दौड़ वाली ज़िन्दगी. काम का प्रेशर. एक शादी. और उसके बीच अनप्लैंड प्रेगनेंसी. कहानी के अंत में एक ट्विस्ट और है. वो हम यहां बताकर सस्पेंस ख़राब नहीं करेंगे.

इस फिल्म में कल्कि का किरदार एक स्ट्रॉन्ग और जागरूक महिला का है. वो सेक्सिस्ट लोगों को अपने काम से जवाब भी देना जानती है. जब उसकी बच्ची के साथ एक भयभीत करने वाली घटना होती है तो वो डरने से ज्यादा बहुत गुस्सा भी होती है और एक्शन लेती है.

4. दैट गर्ल इन येलो बूट्स

रुथ (कल्कि) विदेश से अपने पिता की तलाश में इंडिया आती है. वो अपने पिता से कभी मिली नहीं. बस उनका एक ख़त है उसके पास. अनजान शहर वो एकदम अकेली है. सर्वाइव करने के लिए एक मसाज पार्लर में काम करने लगती है. मसाज के साथ-साथ वो क्लाइंट्स को ओरल सेक्स भी देती है. एक्स्ट्रा पैसे कमाने के लिए. सही और गलत के बीच फंसी लड़की एक दिन अपने पिता से मिलती है. बहुत ही शॉकिंग सिचुएशन में.

ये किरदार अपने आप में बहुत अनोखा है. समाज का एक नैतिक पैमाना होता है जिसकी सुई हमेशा सही और ग़लत के बीच झूलाई जाती है. इस किरदार के निजी फैसले दर्शकों की नज़र में भले ही नैतिक रूप से ग़लत हों, लेकिन रूथ की नजर में नहीं. ये किरदार इस लिहाज से भी खास है कि ये हमें इजाजत नहीं देता कि हम उसे नैतिक रूप से जज कर सकें या उससे घृणा कर सकें.

5. वेटिंग

तारा (कल्कि) का पति अस्पताल में है. यहां उसकी मुलाक़ात शिव (नसीर) से होती है. एक बुज़ुर्ग कॉलेज प्रोफ़ेसर. उसकी पत्नी भी सीरियस कंडीशन में है. तारा और प्रोफ़ेसर अच्छे दोस्त बन जाते हैं. दोनों एक दूसरे की हिम्मत बनते हैं.

अकसर इंसान को तकलीफ़ से डील करना नहीं आता और ये पिक्चर वही करना सिखा जाती है. एक ह्यूमन लेवल पर दिल को छूती है. तारा का किरदार भी. अगर आप किसी ऐसी सिचुएशन में हैं तो आपको ये पिक्चर ज़रूर देखनी चाहिए. पुरुष-महिला के रिश्ते को हर कहानी में जहां सेक्शुअल रंग से ही देखने की कोशिश होती है, ये कहानी इस लिहाज से अलग है. इसमें तारा और प्रोफ़ेसर का रिश्ता प्यारा है. जो दिल को ठंडक पहुंचाता है.

 

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