इस बैंक में सैनिटरी पैड मिलते हैं, फिर होती है पासबुक में एंट्री

'पैडमैन' फिल्म देखकर आया आइडिया आज हकीकत बन चुका है.

बरेली का नाम सुनते ही दिमाग में सबसे पहली चीज़ क्या आती है? बरेली का झुमका? प्रियंका चोपड़ा? या बरेली की बर्फी?

ये खबर पढ़ने के बाद एक चीज और आएगी. पैड बैंक.

जून 2018. बरेली के चित्रांश सक्सेना ने पैडमैन देखी. वही, अक्षय कुमार, राधिका आप्टे और सोनम कपूर वाली फिल्म. जिसमें अक्षय ने अरुणाचलम मुरूगानंतम का किरदार निभाया था. फिल्म में पीरियड्स के दौरान पैड की जरूरत की बात की गई है.

ये देखकर चित्रांश को आइडिया आया कि छोटे शहरों और गांवों में अभी भी पैड को लेकर, पीरियड्स को लेकर काफी टैबू हैं. उन महिलाओं के लिए कुछ करने की ज़रूरत है जो पैड खरीद कर इस्तेमाल नहीं करतीं. बस फिर क्या था. चित्रांश ने एक टीम जुटाई, और लग गए काम पर. काम क्या था? आस-पास की झोपड़पट्टियों में जाकर जानकारी इकट्ठा करना कि आखिर महिलाएं पीरियड्स के दौरान कैसे मैनेज करती हैं. इस काम में वो लोग लगे तो उन्हें पता चला कि पैड्स खरीदने लायक पैसे अक्सर ही महिलाओं के पास नहीं होते. तो वो ऐसे उपाय अपनाती हैं जो उनकी सेहत के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक हैं. ये सब कुछ देखकर उन्होंने सोचा, क्यों न एक पैडबैंक की शुरुआत की जाए जो महिलाओं को जरूरत के अनुसार पैड दे सके.

whatsapp-image-2019-07-23-at-2_072319071327.jpgतस्वीर: ऑडनारी / चित्रांश सक्सेना

हमने चित्रांश से बात की. उन्होंने बताया कि किस तरह पैडबैंक बना. किस तरह से इसमें लोग जुड़े. किस तरह ये लोग पैड मंगवाते और बांटते हैं. इनके आगे के क्या प्लान हैं. पैड खरीदने के लिए इनका बजट कहां से आता है.

  1. बैंक की शुरुआत जून, 2018 में हुई. इसके पीछे की प्रेरणा पैडमैन फिल्म देखकर मिली. अक्टूबर, 2018 में इसे ट्रस्ट के रूप में रजिस्टर किया गया.
  2. पैडबैंक के सदस्य आस-पास के इलाकों में पैड डिलीवर करने जाते हैं. ये इलाके झुग्गियां हैं, आस-पास के गांव भी हैं.
  3. इस वक़्त हर महीने तकरीबन 150 पैकेट बांटे जा रहे हैं. एक पैकेट में आठ पैड होते हैं. आम तौर पर ये पैकेट 30 रुपए का आता है. लेकिन चूंकि पैडबैंक इन्हें थोक के भाव में चैरिटेबल कॉज के लिए लेता है तो उन्हें एक पैकेट 17-18 रुपए का पड़ता है.
  4. जो भी महिला पैडबैंक से पैड लेना चाहती है उसे यहां अकाउंट खुलवाना पड़ता है. हर महीने दो पैड के पैकेट मिलते हैं उन्हें. पैडबैंक से आकर लेना होता है. अगर वो किसी तरह नहीं ले पातीं, तो आकर खुद टीम के वालंटियर उन्हें दे जाते हैं. 

    whatsapp-image-2019-07-23-at-2_072319071550.jpgतस्वीर: ऑडनारी / चित्रांश सक्सेना

  5. अभी बॉयज ओनली स्कूल्स में नहीं गई है टीम, लेकिन आने वाले समय में इसकी उम्मीद है.
  6. कई लोग ऑनलाइन पैड्स आर्डर करके उनके एड्रेस पर भी भिजवाते हैं. अभी तक उनको पैसे डोनेट करने के लिए सिर्फ पेटीएम ही उपलब्ध है. कोई अकाउंट नहीं है.
  7. पैड बैंक वाले स्कूलों में जाकर पैड्स के इस्तेमाल से जुड़ी वर्कशॉप भी कराते हैं. ताकि इसके प्रति जागरुकता बढ़ सके. पीरियड्स को लेकर झिझक ख़त्म हो इस पर भी बात करते हैं.

एक फिल्म से इंस्पायर होकर कुछ लोग जिंदगियां बदलने में लगे हुए हैं और असल में इसका असर दिख रहा है. ये शायद सिनेमा के समाज पर अच्छे असर के चुनिन्दा बढ़िया उदाहरणों में से एक है.

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