आज़म खान, आप चाहकर भी एक आइटम गर्ल नहीं बन सकते
इतनी ललक है आइटम गर्ल कहलाने की, जानते भी हैं इसका मतलब?
सीन 1.
अंधेरा है. अचानक से पचहत्तर लाइटें जलती हैं. लोग ख़ुशी के मारे चिल्ला पड़ते हैं. उनका हीरो आ गया है. उसने बहुत खून बहा लिया है. बहुत लोगों को मार पीट लिया है. अब उसको आराम चाहिए. सुकून चाहिए. चाहिए कि कोई उसका तन-मन हल्का कर दे. ये वो अगर चाहे तो घर जाकर भी कर सकता है. लेकिन अगर हीरो अभी घर चला गया तो उसको पता है उसकी फिल्म पिट जाएगी. इसीलिए अभी उसे आकर बैठना होगा. लोग शराब के नशे में झूमेंगे. झूमते हुए लोगों की आंखें धीरे-धीरे चौड़ी होती जाएंगी. फिर सामने आएगी बिजली के झटके जैसी- आइटम गर्ल.
उसकी कमर पर फोकस होगा. उसकी छाती पर. बार-बार लचकती कमर के ठुमकों पर. वो खुद को सौ टका हीरो की प्रॉपर्टी बता देगी. तंदूरी मुर्गी बनकर सामने बिछ जाएगी. पौव्वा चढ़ाकर हीरो के सामने खुद को पेश करेगी.
फोटो: यूट्यूब स्क्रीनशॉट
हीरो बिना भौंहें हिलाए चुपचाप बैठा रहेगा. कुर्सी पर. आस पास बैठे लोग उससे आंखें सेंक सकते हैं. लेकिन आइटम गर्ल उनकी पहुंच से बाहर है. आइटम गर्ल सिर्फ हीरो के आस पास नाचेगी. लोगों की इमेजिनेशन में उनके बिस्तर में भी घुस आएगी. लेकिन हीरो के लिए वो बस उस वक़्त का मसाला है. ऐसा मसाला जिसमें उसे इंटरेस्ट भी नहीं है. लेकिन पंगत में बैठे आदमी की तरह वो बस साथी-संघाती के लिहाज से उठ नहीं रहा. उसकी दाल रोटी उसकी हिरोइन है. वो लाख बुरा हो, दिल के मामले में उसका पूरा कंट्रोल है. ये लूज औरतें उसे डिगा नहीं सकतीं. उसका प्रेम सच्चा है. आइटम गर्ल के सामने बैठना तो उसकी मर्दानगी का एक छोटा सा सर्टिफिकेट है. बॉक्स ऑफिस पर टांगने के लिए बेहद बेहद ज़रूरी. वो अपनी हिरोइन के पास लौटेगा. तब तक आइटम गर्ल किसी और के साथ जा चुकी होगी.
आइटम गर्ल को सिनेमा की दुनिया में एक कंट्रास्ट की तरह इस्तेमाल आज से नहीं, तब से किया जा रहा है जब से यह एहसास हुआ कि लोग अपने सामने पेश होती हुई औरत का सम्मोहन टाल नहीं सकते, ख़ासतौर पर जब वो एक इतनी बड़ी स्क्रीन पर हो कि देखने वाला नज़रें चाहकर भी ना हटा सके.
परोसने की डेफिनिशन देखनी हो तो आइटम नंबर देख लिए जाएं.
लेकिन आइटम गर्ल्स की किस्मत सिर्फ इतनी ही थी, कि वो बच्चों के झबले जैसे कपड़े पहनकर नचवाई जाएं. स्क्रीन से हटें, और कहानी को आगे बढ़ने दें. पूरे फिल्म का विरोधाभास अपने ‘फिल्म का हिस्सा नहीं होता आइटम सॉन्ग यार’ से लेकर ‘यार एक आइटम सॉन्ग तो जरूरी है ही वरना कैसे चलेगा’ तक कंधे पर टांगे रहें, फिर निकल जाएं. चाहें तो अपने दम पर फिल्म चला लें, रहेंगी फिर भी एक चलता फिरता मेंशन.
लेकिन जो लोग उन्हें देखते हैं, वो उनकी एक छवि लेकर घर लौटते हैं. ऐसी छवि जिसका रियलिटी से कोई लेना देना नहीं होता. पर लोग भूलते जाते हैं. सिनेमा को अक्सर पलायन का एक माध्यम माना जाता है. कुछ लोग उस पलायन को अपने साथ घर ले आते हैं. जैसे एक आदमी लाया था. सन्देश बालिगा. जो ऑस्ट्रेलिया में दो लड़कियों के पीछे पड़ा था. केस चला था उस पर पीछा करने का. लेकिन फिर वो छूट गया था. क्योंकि उसके ऑस्ट्रेलियाई वकील ने कहा था. भारतीय पुरुषों के लिए आम होता है औरतों के पीछे पड़े रहना. भले ही औरतें उनमें कोई इंटरेस्ट ना दिखाएं. ये चीज़ वो बॉलीवुड मूवीज से सीखते हैं.
कब तक रूठेगी चीखेगी चिल्लाएगी, दिल कहता है एक दिन हसीना मान जाएगी. बिना चीखे चिल्लाए मान जाने वाली लड़की आइटम गर्ल होती है, बॉलीवुड की नज़र में.
ये एक उदाहरण था पलायन के असल ज़िन्दगी में आ जाने का.
यह आइटम गर्ल्स के साथ भी होता है. उनकी फिल्म की छवि सिनेमा के पर्दे से उतार कर घर ले जाई जाती है. सड़कों पर चलते लोगों के चश्मे में उतर जाती है. चबाकर थूक दिए जाने वाली च्युइंग गम की तरह इस इमेज को ट्रीट किया जाता है. जिस लड़की की बेइज्जती करनी हो, उसे चालू कह दो, आइटम गर्ल कह दो. चीज़ बड़ी है मस्त-मस्त गुनगुनाने वाले लौंडे-लपाड़े सिर्फ नज़रों से ही किसी लड़की का जीना दहशत से भर सकते हैं, और उसे आइटम या माल कह देना उसके पूरे खानदान का पानी सैकड़ों फीट नीचे उतार देने की तरह हो जाता है. वो ही आइटम गर्ल जिसे देखने के लिए बार-बार वो गाना चलाया जाता है. अगर कोई औरत अपनी मर्ज़ी से भी आइटम गर्ल बनना चाहे, उसके पास उसका खुद का निर्णय लेने का हक नहीं रह जाता. लोगों की नज़र में उतरते ही बड़े पर्दे की कोई भी औरत कमोडिफाई होने, ओब्जेक्टिफाई होने के लिए उपलब्ध हो जाती है.
एक ही झटके में सबसे बड़ा हिट होने और लोगों की नज़र में गिरना सिर्फ एक आइटम गर्ल के हिस्से में आता है.
इसीलिए हमें दिक्कत है आज़म खान के खुद को आइटम गर्ल कहने से. 2017 में ऐसा ही बयान देकर सुर्ख़ियों में आये थे समाजवादी पार्टी के आज़म खान. अब दुबारा वही बात बोलकर आए हैं. उनके ऊपर दो FIR दर्ज हो गई हैं कुछ ही समय में. अभी हाल में जो FIR दर्ज हुई है वो राज्य सभा एमपी अमर सिंह ने दर्ज कराई है. गोमती नगर पुलिस थाने, लखनऊ में. आरोप है कि अमर सिंह की बेटियों को एसिड अटैक की धमकी दी है आज़म खान ने.
एक काउंसिल की विशेष बैठक में खान ने कहा, ‘बीजेपी सारे चुनाव मेरे नाम पर ही लड़ती रही है, पिछला विधानसभा चुनाव मेरे नाम पर लड़ा, अब लोकसभा चुनाव भी मेरे ही नाम पर लड़ेगी. मेरा तो यह हाल कर दिया है कि मुझे खुद नहीं पता कि मेरे ऊपर कितने मुकदमे दर्ज कर दिए गए हैं. मेरे नाम से कितने समन और वारंट जारी कर दिए गए हैं, मैं तो बस उन्हीं मुकदमों की पैरवी करता घूमता रहता हूं.’
इसीलिए आज़म खान, जब आप कहते हैं, कि आप बीजेपी की पॉलिटिकल आइटम गर्ल हैं, तो हमें उस पर हंसी आती है. जब आप ये बात बार-बार कहते हैं और खुद को आइटम गर्ल की उपमा देते हैं, इसके पीछे की साइकी क्या है? ये कि आप सिर्फ लोगों का ध्यान खींचने के लिए हैं? या ये कि आप लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने के लिए हैं? आप कहना चाहते हैं कि बीजेपी आपको आइटम गर्ल की तरह इस्तेमाल करती है तो क्या आपका ये मतलब होता है कि आपके ऊपर लांछन लगाए जाते हैं? जब आप खुद की तुलना आइटम गर्ल से करते हैं तो आपके दिमाग में क्या चल रहा होता है आज़म खान? ये बात एक बार नहीं, बार-बार कही गई है आपकी तरफ से. ये कोई पहली बार तो है नहीं कि बिना सोचे समझे ज़बान फिसल गई हो. वैसे ज़बान का फिसलना भी इंसान के अन्दर की गंदगी का ट्रेलर दे देता है कभी-कभी. खुद को आइटम गर्ल कहकर आप क्या साबित करना चाहते हैं? ये कि आपकी कोई इज्ज़त नहीं है? ये कि आप पब्लिसिटी के लिए काम आते हैं? ये कि आप सिर्फ कंट्रोवर्सी के काम आते हैं? इससे पहले जया प्रदा को नाचने वाली कहकर आप क्या साबित करना चाहते थे? ये कि आपके कैरेक्टर की छीछालेदर की जाती है, उन्हीं लोगों द्वारा जिन्होंने आपको आइटम गर्ल की पदवी दी है?
जवाब चाहे हां में हो या ना में, शर्म दोनों हालत में आनी चाहिए. आपको भी और थोड़ी बहुत हमें भी.
जाते-जाते आलोक धन्वा की कविता ‘भागी हुई लड़कियां’ से कुछ पंक्तियां पढ़ते जाइए,
तुम
जो
पत्नियों को अलग रखते हो
वेश्याओं से
और प्रेमिकाओं को अलग रखते हो
पत्नियों से
कितना आतंकित होते हो
जब स्त्री बेखौफ भटकती है
ढूंढती हुई अपना व्यक्तित्व
एक ही साथ वेश्याओं और पत्नियों
और प्रेमिकाओं में.
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