अरुणिमा सिन्हा: एक पैर नहीं था, फिर भी एवरेस्ट चढ़ीं, अब आलिया भट्ट इनका रोल करेंगी
ट्रेन से गुंडों ने धक्का दे दिया था, बायां पैर खोने के बाद ट्रेनिंग शुरू की
11 एप्रिल 2011.
लखनऊ से दिल्ली जाने वाली पद्मावती एक्सप्रेस. जनरल डिब्बा. कुछ गुंडे डिब्बे में घुस आए. ट्रेन में छीना झपटी करने लगे. उसी कोच में एक लड़की बैठी थी. उसका बैग और गोल्ड चेन छीनने की कोशिश करने लगे. लड़की ने उन्हें छीना झपटी नहीं करने दी. विरोध किया. ये बात उन गुंडों को बर्दाश्त नहीं हुई. उन्होंने उसे धक्का दे दिया.
लड़की ट्रेन से बाहर गिर गई. ट्रेन के पास वाला ट्रैक खाली था. वहां गिरते ही उसकी नज़रें पलटीं. देखा तो उस ट्रैक पर दूसरी तरफ से ट्रेन आ रही थी. उठने की कोशिश की. नहीं उठ पाई. ट्रेन धड़धड़ाती हुई उसके बाएं पैर के ऊपर से निकल गई. लड़की बेहोश हो गई. अस्पताल ले जाया गया. जान बचाने के लिए पैर काटना पड़ा.
लड़की थी अरुणिमा सिन्हा. नेशनल लेवल की वॉलीबॉल और फुटबॉल प्लेयर. लखनऊ से दिल्ली जा रही थीं. CISF की परीक्षा देने. बीच में ये घटना हो गई. खेल मंत्रालय ने 25000 रूपए देकर जान छुड़ाने की कोशिश की. लेकिन तब तक इस मामले पर हंगामा हो गया था. खेल राज्य मंत्री अजय माकन ने दो लाख रुपए का मुआवजा देने की घोषणा की. ये भी कहा कि CISF में उनको नौकरी मिल जाएगी. भारतीय रेलवे ने भी जॉब देने की बात कही.
दुर्घटना के बाद अरुणिमा को एम्स लाया गया. वहां उन्होंने चार महीने गुज़ारे. दिल्ली की एक प्राइवेट कम्पनी ने उनको प्रोस्थेटिक लेग लगवाया. बिना किसी खर्चे के.
जांच पड़ताल में पुलिस ने उल्टे अरुणिमा पर आरोप लगा दिए. कहा कि वो सुसाइड करने की कोशिश कर रही थीं, या ट्रैक पार कर रही थीं. पुलिस के इस क्लेम को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने संज्ञान में नहीं लिया. इंडियन रेलवे को आदेश दिया कि अरुणिमा को पांच लाख का हर्जाना दे.
लेकिन ये अरुणिमा के सफ़र का अंत नहीं था. ये तो शुरुआत थी.
अरुणिमा का जब अस्पताल में ट्रीटमेंट चल रही रहा था, तब उन्होंने कुछ लोगों को बातें करते हुए सुना. वो लोग एवरेस्ट से लौटे एक ग्रुप के बारे में बात कर रहे थे. उसे सुनकर अरुणिमा के भीतर एव्रेर्स्त पर जाने की इच्छा जगी. युवराज सिंह के बारे में वो पढ़ चुकी थीं. उन्होंने किस तरह कैंसर से जंग लड़ी, इसने अरुणिमा को बहुत प्रभावित किया था. उत्तरकाशी में नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग से जो बेशक कोर्स होता है पर्वतारोहन का, उसमें बहुत अच्छा परफॉर्म किया. उनके भाई ओमप्रकाश ने उनको काफी प्रोत्साहित किया. कहा, ये कर सकती हो, तो एवरेस्ट भी चढ़ सकती हो.
तस्वीर: arunimasinha.com
बस क्या था.
अरुणिमा ने ठान ली.
सबसे पहले बछेंद्री पाल को कांटेक्ट किया. बछेंद्री पाल देश की पहली महिला हैं जिन्होंने एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी और उसकी चोटी फतह की थी. बछेंद्री पाल के अंडर अरुणिमा ने ताता स्टील एडवेंचर फाउंडेशन में नाम लिखा लिया. 2012 में बछेंद्री पाल के गाइडेंस में उन्होंने कई दूसरी चोटियां फतह कीं.
आखिर में 1 एप्रिल 2013 को सुसेन महतो के साथ अरुणिमा ने एवरेस्ट पर चढ़ाई शुरू की. 21 मई, 2013 को सुबह 10 बजकर 55 मिनट पर अरुणिमा ने इतिहास रच दिया. एवरेस्ट की चोटी फतह करने वाली वो ऐसी पहली महिला बनीं जिनका शरीर का एक अंग नहीं था. ऐम्प्युटी टेक्निकल शब्द है. इसका मतलब वो व्यक्ति जिसके हाथ या पैर या दोनों कट चुके हों.
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इस अचीवमेंट के लिए अखिलेश यादव की सरकार ने अरुणिमा को 20 लाख का पुरस्कार दिया. पांच लाख रुपए और समाजवादी पार्टी की तरफ से दिए गए.
अब अरुणिमा अपने जैसे लोगों को एनकरेज करने के लिए काम करना चाहती हैं. उनकी अपनी एकेडमी है- शहीद चंद्र शेखर आज़ाद विकलांग खेल एकेडमी. इसमें खेल के ज़रिए शारीरिक रूप से विकलांग लोगों को खेल कूद के ज़रिए स्ट्रांग और कॉंफिडेंट बनाने की ट्रेनिंग होगी. ताकि वो खुद पर भरोसा करना सीख सकें. आगे बढ़ सकें.
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अब अरुणिमा की लाइफ पर बायोपिक बन रही है. अरुणिमा ने एक किताब लिखी है: Born Again on The Mountain: A Story of Losing Everything and Finding it Back. इसी पर आधारित होगी ये बायोपिक, ऐसा कहा जा रहा है. ख़बरों की मानें तो अरुणिमा के किरदार आलिया भट्ट निभाएंगी.
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