अनिल कपूर ने इस फिल्म के लिए अपनी मूंछें मुंडवा दी थीं
हम जब-जब अनिल कपूर, या दुनिया छोड़ चुके यश चोपड़ा और श्रीदेवी को याद करेंगे, इस फिल्म को जरूर याद करेंगे.
अनिल कपूर अपनी मूंछों के लिए जाने जाते हैं. बल्कि मूंछों के बिना उनके चहरे की कल्पना करना ही अजीब लगता है. मगर आपको पता है, एक फिल्म के लिए उन्होंने अपनी मूंछें साफ़ करवा दी थीं? एकाध सीन नहीं, पूरी फिल्म के लिए. फिल्म का नाम है लम्हे. साल 1991 में रिलीज हुई थी ये फिल्म. और इसकी दो चीजें
आजतक इस फिल्म को देखने वाला कोई नहीं भुला पाया:
1. बिना मूंछों के अनिल कपूर
2. मोरनी बागा में गीत पर सेहरा में नाचतीं श्रीदेवी
एक ऐसी लड़की के तौर पर, जो अनिल कपूर के गाने सुनकर बड़ी हुई, मेरे लिए उन्हें बिना मूंछों के देखना बड़ा अजीब था. और फिल्म में दिखाई गयी चीजें भी किसी को थोड़े समय के लिए अपनी कुर्सी पर कसमसाने के लिए मजबूर कर सकती हैं. लम्हें के निर्देशक थे यश चोपड़ा. यश चोपड़ा की आखिरी फिल्म 'जबतक है जान' थी. रोमैंटिक फिल्मों का बेताज बादशाह कहते थे इन्हें. मगर कई रोमैंटिक फ़िल्में बनाने के पहले उन्होंने कई ऐसी फ़िल्में भी बनाई थीं जो हमें एक बेहतर समाज बनाती हैं. 1959 में आई 'धुल के फूल' ऐसी ही फिल्मों में से एक थी.
मगर हम लम्हें फिल्म पर वापस लौटते हैं.
1991 में जब फिल्म रिलीज हुई, उसने लोगों को काफी डिस्टर्ब किया. जिन्होंने लम्हें नहीं देखी है, उन्हें बता दूं. ये फिल्म एक ऐसे राजकुमार वीरेंद्र प्रताप सिंह के बारे में है जो उम्र में खुद से बड़ी औरत पल्लवी (श्रीदेवी) के प्रेम में पड़ जाता है. मगर पल्लवी को किसी और से प्रेम है. वो किसी और से शादी करती है. मगर उसके पति की मौत हो जाती है. और प्रेगनेंट पल्लवी की अपनी बच्ची को जन्म देते समय मौत हो जाती है. चूंकि कंवर वीरेंद्र के अलावा पल्लवी का कोई दोस्त नहीं था, बच्ची को वीरेंद्र के हवाले कर दिया जाता है.
मुसीबत तब खड़ी होती है जब वीरेंद्र को पता चलता है कि बड़ी होकर पल्लवी की बेटी पूजा बिलकुल अपनी मां की तरह दिखती है. ये कहना न होगा कि पूजा, वीरेंद्र की आधी उम्र की भी थी. वीरेंद्र पूजा से आकर्षित होते हुए भी उसे इग्नोर करता है. मगर पूजा को कंवर वीरेंद्र से प्रेम होने लगता है.
फिर यूं होता है कि पूजा बिना अपनी मां के इतिहास को जाने वीरेंद्र से कहती है कि वो उसकी मांग में सिंदूर भर दे. तब वीरेंद्र उसे पुरानी कहानी बताता है. पूजा उससे कहती है कि वीरेंद्र और पल्लवी में कभी असल संबंध नहीं रहे. फिर वीरेंद्र और पूजा की शादी में क्या तकलीफ हो सकती है? पूजा ये भी कहती है कि एक वयस्क औरत के तौर पर अगर वो अपनी शादी का फैसला खुद लेती है तो इसमें गलत क्या है. ये वही सीन था जिसने भारतीय सिनेमा के दर्शकों को चौंका दिया था.
ये कैसा पुरुष है जो पहले मां के प्रेम में पड़ा, फिर उसी की बेटी के प्रेम में पड़ गया!
अनिल कपूर के किरदार के अंदर के द्वंद्व और दुविधाएं हमारे समाज का आईना हैं. वीरेंद्र और पूजा अंत में साथ आ जाते हैं. फिल्म का सुखद अंत होता है. मगर फिल्म ने कुछ ऐसे सवाल पूछे जिसने जनता को सोचने पर मजबूर कर दिया था.
ये फिल्म हमारे समाज का आईना भी थी. क्योंकि उम्र में छोटी या बड़ी औरत से शादी करना अभी भी अजीब तरीके से देखा जाता है. 52 साल के मिलिंद सोमन अपनी 26 साल की गर्लफ्रेंड अंकिता से शादी करें, एक समाज के तौर पर हम इसे ही हजम नहीं कर पा रहे हैं. जाहिर सी बात है, आज से 27 साल पहले दर्शक इसे कैसे समझ पाए होंगे.
बॉलीवुड फिल्मों का का हमेशा से ही हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व रहा है. शादी करने से लेकर हनीमून पर जाने तक, जीवन का हर बड़ा इवेंट हम बॉलीवुड से कॉपी करते हैं. फिल्मों से समाज बदल सकते हैं. ये दंगल फिल्म के आने के बाद हुई हुआ, कि बनारस में परंपरा के नाम पर 450 साल से चल रहे लड़कियों के साथ भेदभाव को ख़त्म करते हुए अखाड़ों में औरतों को जाने की अनुमति मिली.
लम्हे को क्लासिक फिल्म माना गया है. क्रिटिक्स इसे यश चोपड़ा की सबसे अछि फिल्मों से एक मानते हैं. श्रीदेवी को इस फिल्म के लिए न सिर्फ तारीफें मिली थीं, बल्कि फिल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड भी मिला था.
लगातार ऑडनारी खबरों की सप्लाई के लिए फेसबुक पर लाइक करे