उस विडियो में आखिर क्या है, जिसकी वजह से अमिताभ बच्चन और उनकी बेटी विवादों में हैं?
जिस ऐड ने लोगों को रुलाया, उसे देख गुस्सा क्यों आया?
अमिताभ बच्चन एक एड में नज़र आए हैं. इस बार सीधे-सीधे कुछ बेच नहीं रहे हैं. एडवरटाइजिंग की दुनिया के सबसे बेहतरीन मार्केटिंग तरीकों में से एक इस्तेमाल किया गया है इस एड में. क्या है ये एड? पहले तो वो देख लीजिए:
T 2870 - Emotional moment for me .. tears welling up every time I see it .. daughters are the BEST !! pic.twitter.com/7Jes2GDPBo
— Amitabh Bachchan (@SrBachchan) July 17, 2018
इस एड में पहली बार स्क्रीन पर उनकी बेटी श्वेता बच्चन नंदा नज़र आई हैं. अमिताभ बच्चन ने ट्वीट भी इस एड को उसी तरह किया है. कहा उनकी आंखों में आंसू आ रहे इस एड को देखकर. बेटी की मौजूदगी इस विडियो में उनको भाव विभोर कर रही है.
ये विडियो खबर में इसलिए है क्योंकि ये वायरल हो गया है. यानी 'आग की तरह' फ़ैल गया है.
ये विडियो खबर में इसलिए भी है कि ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कॉन्फ़ेडरेशन ने इस एड पर सवाल उठा दिए हैं. उनका कहना है कि ये विज्ञापन उनकी इमेज को नुकसान पहुंचा रहा है. इस बात पर कल्याण जूलर्स ने ये भी कहा है कि इस विज्ञापन में दिखाए गए सभी लोग एवं घटनाएं काल्पनिक हैं. लेकिन बैंक अफसरों की ये आर्गेनाइजेशन कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं. ऐसा लग रहा है कि इनकी और जूलर्स के बीच खींचातानी अभी चलेगी. इसपर शायद न्यूज आर्टिकल भी आएं. आते रहेंगे.
हम इस पूरे मामले में एक ऐसी चीज़ पर बात करना चाहते हैं, जिसको लेकर बहस उतनी नहीं हो रही जितनी होनी चाहिए. किस तरह से विज्ञापनों को इस्तेमाल करने का तरीका बदल गया है. किस तरह विज्ञापन बदल गए हैं. किस तरह से किसी भी चीज़ को मार्केट करने का तरीका बदल दिया गया है.
मार्केटिंग के कुछ फंडे होते हैं. जब से सोशल मीडिया आया है तब से इनको इस्तेमाल करने का तरीका अलग-अलग तरीके से देखने को मिल रहा है. आजकल टीवी /अखबार की जगह अधिकतर विज्ञापन सोशल मीडिया (फेसबुक/इन्स्टाग्राम) वगैरह पर देखे जाते हैं. इन विज्ञापनों की सबसे ख़ास बात ये है कि इनको पॉपुलर करने के लिए ट्रेडिशनल मार्केटिंग तहजीब की ज़रूरत नहीं होती. यानी कि अगर विज्ञापन चल गया, तो जनता अपने आप उसे वायरल बना देती है. एक लड़की से वो 25 दूसरी लड़कियों तक पहुंच जाता है. ये जो ‘शेयर’ कर सकने का नया पहलू है, वो मार्केटिंग को एक अलग ही लेवल पर पहुंचा देता है. कैसे?
मार्केटिंग यानी किसी चीज़/जगह/सुविधा/इंसान/इंसान की इमेज को बेचने की कला. जब आप किसी क्रिकेटर को कोल्ड ड्रिंक पीते हुए देख रही होती हैं तो आप उस प्रोडक्ट को उस खिलाड़ी की सफलता से जोड़ कर देख रही होती हैं. जब आप किसी एक्ट्रेस को कोई साबुन इस्तेमाल करते हुए देख रही होती हैं तो आप उस साबुन को खूबसूरती से जोड़ कर देख रही होती हैं. साबुन का मूल काम है- सफाई करना, उससे नहीं जोड़ा जा रहा होता उसको विज्ञापन में. जब आप देखती हैं कि विज्ञापन में कोई लड़की फेयरनेस क्रीम लगा रही होती है तो आप उस क्रीम से नहीं जुड़तीं , उस क्रीम को लगाकर समाज में जो स्वीकृति और अटेंशन मिलने की बात की जाती है, आप उससे जुड़ा हुआ महसूस करती हैं. पान मसाला बेचने वाली कम्पनियां लाल-लाल पीक थूकते लोगों से एड नहीं बनातीं. ऐसे इंसान को लेकर एड बनाती हैं जो किसी मॉडलिंग के कैटलॉग से निकल कर सधी चाल चलते हुए नज़र आते हैं. विदेशों में अपने देश का झंडा फहराते नज़र आते हैं. पॉवर वाली पोजिशन में नज़र आते हैं. देखने वाला उस चीज़ से खुद को जोड़ना चाहता है. उससे लिंक करने वाली चीज़ उसके सामने बस वही रह जाती है जिसका वो विज्ञापन देख रहा होता है.
किसी भी इन्सान को अपने विज्ञापन से जोड़ने के तरीके कैसे बदले हैं. मूल चीज़ वही है. बस अब लोगों को इमोशनली इन्वॉल्व करने की चाल अधिक चली जा रही है. ये एड सीधे-सीधे अपने प्रोडक्ट की बात भी नहीं करते. एक इमोशनल सी कहानी दिखा कर उसमें अपना प्रोडक्ट प्लेसमेंट कर देते हैं. उदाहरण से समझिए.
जैसा एड अभी बच्चन जी ने अपनी बेटी के साथ किया है ,ऐसी ही भाव विभोर कर देने वाली चिट्ठी लिखी थी अमिताभ बच्चन ने जब पिंक रिलीज होने वाली थी. पिंक उनकी वही फिल्म जिसमें उन्होंने औरतों के कंसेंट और समाज में उनकी इमेज की बात की थी. इस फिल्म के रिलीज़ होने से पहले उन्होंने अपनी पोती आराध्या और नतिनी (नवासी) नव्या नवेली नंदा के नाम एक चिट्ठी लिखी. इस चिट्ठी में उन्होंने बताया कैसे उनको अपनी शर्तों पर जीना चाहिए. यही नहीं, बातों-बातों में अपनी पोती आराध्या के बड़े होने तक खुद के जीवित न रह पाने की बात भी कह गए.
स्टार ऑफ द मिलेनियम. सदी का महानायक.
अपने घर की बेटियों को खुद के पैरों पर खड़े होने के लिए कह रहा है. साथ में अपने मरने की भी बात कह रहा है. करोड़ों लोगों के आंसू आ गए. विडियो वायरल होनी ही थी. किसी का ध्यान नहीं गया कि अभी फिल्म भी तो आनी है.
मेरे सीनियर ने मेरी एक कविता पढ़ी. कहा उसमें एकदम गलदश्रु भावुकता है. दिमाग चकराया. मैंने डिक्शनरी उठाई. उसमें लिखा था – छोटी-छोटी बातों पर आंसू बहाने की भावुकता. गलदश्रु यानी आंसू बहाता हुआ. लिजलिजी वाली भावुकता. कुछ-कुछ वैसा ही है ये वाला नया एड. बाप कुछ ज्यादा ही ईमानदार है, कुछ ज्यादा ही लाचार है, बेटी कुछ ज्यादा ही लायक है, बैंक के लोग कुछ ज्यादा ही कमीने हैं. इन योर फेस वाली भावुकता. ऊपर से मार्केटिंग के लिए सोने का अंडा देने वाली बात ये कि अमिताभ की रियल लाइफ बेटी श्वेता उनके साथ इस एड में. एक सोची समझी स्ट्रेटेजी के तहत. वो भी तब जब अमिताभ बच्चन का इस जूलरी ब्रांड से कोई कनेक्शन नहीं है. आंसू आएंगे, क्लिक्स और रेवेन्यू लाएंगे.
एक बहुत पॉपुलर एड आया था एक और जूलरी कंपनी का. उसमें दिखाया था कि किस तरह से हर लड़की की शादी पर उसके बाप इमोशनल हो जाते हैं. अलग अलग भाषाएं इस्तेमाल की गई थीं, अलग अलग कल्चर की शादियां दिखाई गई थीं, जिनमें गुजराती, मलयाली, हर जगह की दुल्हन को दिखाया गया था. जिन लोगों ने देखा उन्होंने तारीफ़ की. विडियो शेयर हुआ. उसके बाद कई ऐसे एड आए. लड़की की शादी. इमोशनल बाप. इन सबके बीच में जो कांस्टेंट रहा वो थे गहने. मानो एक बेटी और बाप के बीच के रिश्ते को सबसे ज्यादा अच्छे तरीके से अगर कोई चीज़ दिखा सकती है तो वो ये कि वो बाप अपनी बेटी की शादी के लिए कितने गहने खरीद सकता है. गहने प्यार को क्वान्टिफाई करने का एक मापदंड बनते नज़र आते हैं.
भावनाओं में बहते हुए हमें ये अहसास भी नहीं होता कि जाने-अनजाने हम प्यार को एक ख़ास चीज़ से नापने लग गए हैं. और वो चीज़ हमारे लिए मार्केट डिसाइड कर रहा है. इसे अंग्रेजी भाषा में ‘गिमिक’ (Gimmick) कहा जाता है. मार्केटिंग गिमिक. कुछ भी बेचने के लिए ऐसे हथकंडों का इस्तेमाल करना कि पब्लिक की अटेंशन उससे हटे ही न. इसमें सफल होते प्रोडक्ट नाम कमा रहे हैं, सोशल मीडिया पर उनके पेज धड़ाधड़ लाइक हो रहे हैं. उनकी इमेज बिल्डिंग हो रही है.
जनता का क्या है, मीडियम थी, मीडियम रहेगी. मीडियम यानो माध्यम. बन्दूक जिस पर रख कर चलाई जाए वो कंधा. टारगेट तो हमेशा से पैसा रहा है, और रहेगा. कोई अगर कुछ और कहता है, तो वो झूठ कहता है. यकीन नहीं होता, तो थोड़ा पीछे जाइए. इसी आर्टिकल में हमने पिंक फिल्म की बात की थी. जिसके प्रोमोशन में अमिताभ बच्चन ने रुला मारा था.
फिल्म आई, हिट हुई. इस पर काफी बात भी हुई. बात आई-गई हो गई. फिल्म के रिलीज़ होने का एक साल पूरा हुआ. बच्चन जी ने फोटो डाली. फिल्म की टीम के साथ. उसमें एक भी औरत नहीं थी.
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