घर से दूर रहेंगी, 24 घंटे ABVP के लिए काम करेंगी ये 5 प्रचारक लड़कियां

प्रचारक बनने के बाद इस तरह बदल जाती है जिंदगी.

लालिमा लालिमा
जुलाई 13, 2019
ये पांचों लड़कियां एबीवीपी की प्रचारक हैं. फोटो सोर्स- स्पेशल अरैंजमेंट

ABVP, यानी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद. एक भारतीय छात्र संगठन है. आरएसएस, यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का छात्र विंग है. आपने कई बार खबरों में आरएसएस और ABVP के बारे में सुना ही होगा. ABVP किसी न किसी मुद्दे को लेकर अक्सर न्यूज़ में बना रहता है. अब एक बार फिर ये खबरों में है. क्योंकि इसने अवध क्षेत्र में पहली बार 5 लड़कियों को प्रचारक बनाया है.

अवध, उत्तर प्रदेश के एक पर्टिकुलर हिस्से को कहा जाता है. पुराने समय की बात करें, तो अवध पहले कोशल कहलाता था. और अयोध्या इसकी राजधानी थी. समय बदला तो नाम भी बदल गया. आज के टाइम पर यूपी के लखनऊ, सुल्तानपुर, रायबरेली, उन्नाव, अयोध्या, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा, हरदोई, श्रावस्ती, सीतापुर, कौशाम्बी जैसे जिले अवध क्षेत्र में आते हैं.

तो इन्हीं जिलों में ABVP के प्रचार-प्रसार के लिए 5 लड़कियां प्रचारक बनी हैं. प्रचारक यानी इस संगठन की पूर्णकालिक कार्यकर्ता. इनके नाम हैं-

- दामिनी श्रीवास्तव, एलएलबी कर रही हैं. ग्रेजुएशन हो चुका है. इनका सेंटर लखनऊ है. इनका घर उन्नाव में है.

686d0b18-e4c3-4ef7-8069-79c7d5b3ea6b_750_071319055328.jpgदामिनी श्रीवास्तव. फोटो- स्पेशल अरैंजमेंट

- पंडित सोनी शर्मा- संस्कृत में एमए कर रही हैं. सीतापुर की रहने वाली हैं. इनका सेंटर अयोध्या है.

d512cf7e-98fb-4e71-8d3d-c39fac441dfd_750_071319055411.jpgसोमी शर्मा. फोटो- स्पेशल अरैंजमेंट

- अभिलाषा मिश्रा- बीकॉम कर चुकी हैं. सीतापुर में घर है. सेंटर अयोध्या है.

44c23f2d-998d-4da6-89cd-ae64bc9cc276_750_071319055455.jpgअभिलाषा मिश्रा. फोटो- स्पेशल अरैंजमेंट

- निहारिका त्रिवेदी- एमएसडब्लू कर रही हैं. प्रॉपर लखीमपुर खीरी से हैं. इनका लखनऊ सेंटर है.

f8c67c4d-7b27-4bc9-87c9-78711db4684e_750_071319055542.jpgनिहारिका त्रिवेदी. फोटो- स्पेशल अरैंजमेंट

- श्यामली सिंह- ये भी एमएसडब्लू की स्टूडेंट हैं. इनका सेंटर उन्नाव है. लखनऊ में इनका घर है.

fdd813c3-578a-417f-ae01-d752a6b92d21_750_071319055621.jpgश्यामली सिंह. फोटो- स्पेशल अरैंजमेंट

हमने दामिनी से बात की. उनसे पूछा कि ये प्रचारक क्या होते हैं. और प्रचारक बनने की शर्तें क्या है. ये सेंटर क्या है. तो जो कुछ हमें पता चला, हम आपको बताने जा रहे हैं-

- ABVP के पूर्णकालिक सदस्य को ही प्रचारक बोलते हैं.

- वैसे तो लड़कियां भी प्रचारक बनती हैं, लेकिन अवध क्षेत्र में पहली बार ऐसा हुआ है, कि एबीवीपी ने लड़कियों को प्रचारक बनाया है.

- प्रचारक को अपना पूरा वक्त संगठन को देना होता है. उसे अपने घर से दूर रहना होता है. जैसे दामिनी का घर उन्नाव में है, लेकिन वो लखनऊ में रहती हैं. बहुत इमरजेंसी में ही, वो घर जा सकती हैं. कोई एकदम जरूरी काम हुआ, तभी तो. नहीं तो सारा वक्त एबीवीपी के लिए ही देना होता है.

- घर से दूर रहने का नियम इसलिए है, ताकि प्रचारक का ध्यान घर की समस्याओं पर न जाए. वो पूरा ध्यान संगठन पर ही दे.

- इन्हें सेंटर दिया जाता है. जो सेंटर दिया जाता है, वहां इन्हें काम करना होता है. घर जिस जिले में होता है, सेंटर उस जिले में नहीं हो सकता.

- प्रचारक बनने के लिए मिनिमम एजुकेशन ग्रेजुएशन होनी चाहिए.

- प्रचारक का चरित्र मजबूत होना चाहिए. उसके चरित्र पर किसी भी तरह का कोई आरोप न लगा हो.

प्रचारक का उद्देश्य क्या होता है?

वैसे तो सबसे अहम काम, ज्यादा से ज्यादा लोगों को संगठन से जोड़ना होता है. लेकिन इस सवाल के जवाब में दामिनी ने कहा,

'ज्यादा से ज्यादा लोगों को राष्ट्र निर्माण की भावना से जोड़ना. ये प्रचारक का मुख्य काम होता है. प्रचारक को खुद के साथ ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ना होता है. राष्ट्र निर्माण की भावना से.'

हमने श्यामली से भी बात की. उनसे पूछा कि राष्ट्र निर्माण से उनका क्या मतलब है. तब उन्होंने बताया,

'आज का युवा अपने रास्ते से भटक रहा है. अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़कर वो हिंदी भूल रहा है. जबकि हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है. अंग्रेजी पढ़िए, लेकिन हिंदी का भी आदर करिए. आज का युवा विदेश में जाकर पढ़ाई कर रहा है, जबकि हमारे देश में भी अच्छे-अच्छे संस्थान हैं. तो हम ऐसे युवाओं को, जो राह से भटक रहे हैं, भ्रमित हो रहे हैं. इन्हीं युवाओं को सही दिशा दिखानी है. हमारा पूरा फोकस युवाओं पर ही है.'

कैसे जोड़ते हैं स्टूडेंट को संगठन से?

इस सवाल के जवाब में दामिनी ने हमें बताया, अलग-अलग कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज़ में फंक्शन होते हैं. वहां प्रचारक पहुंचते हैं, और वहां के बच्चों से बात करते हैं. उन्हें राष्ट्र निर्माण की योजना के बारे में बताते हैं. कई बार प्रचारक खुद फंक्शन ऑर्गेनाइज़ करते हैं. यहां जो बच्चे आते हैं, उनसे बात करते हैं. एबीवीपी के नजरिए के बारे में बताते हैं. इन फंक्शन्स में जनरली डिबेट ऑर्गेनाइज़ की जाती है, या फिर भाषण होता है.

दामिनी ने हमें बताया कि जब वो ग्रेजुएशन कर रही थीं, तब उनके साथ पढ़ने वाले कुछ बच्चों के जरिए वो इस संगठन से जुड़ीं. वो एक प्रतिभा सम्मान कार्यक्रम में पहुंची थीं, जहां उनकी मुलाकात एबीवीपी के प्रचारकों से हुई थी. उसके बाद उन्होंने खुद ऑर्गेनाइज़ जॉइन कर लिया. उन्होंने 2015 में एबीवीपी जॉइन की थी. अब वो पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन चुकी हैं. दामिनी कहती हैं कि ये तो पक्का है कि वो अगले एक साल तक के लिए प्रचारक रहेंगी, लेकिन वो इससे ज्यादा समय के लिए भी इस संगठन से जुड़ी रह सकती हैं.

वहीं श्यामली का कहना है कि उन्होंने अभी ज्यादा कोई प्लानिंग नहीं की है. अभी उनका पूरा फोकस प्रचारक के तौर पर अच्छे से काम करने में है.

एक और बात, एक व्यक्ति कितने साल तक प्रचारक बना रहता है, इसकी कोई पर्टिकुलर उम्र नहीं है, या समयावधि नहीं है. 

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