मासूम बच्चे को जबरन पेशाब पिलाई क्योंकि वो दलित था
टीचर और प्रिंसिपल ने ये टॉर्चर करने की पूरी छूट दी
दलित या नीची जाति के होने के कारण बच्चों पर दबाव बनाया जाता है. ये दबाव इतना बढ़ जाता है कि बच्चे आत्महत्या तक कर लेते हैं. एम्स और आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से भी ऐसी कई घटनाएं सामने आती हैं. जाति की रूढ़िवादी सोच समाज में तो है ही, शैक्षणिक संस्थाओं में भी तथाकथित पढ़े-लिखे बच्चों और टीचरों के मन में बसी हुई है.
ऐसी ही एक घटना पंजाब के जालंधर के एक स्कूल से सामने आई है. जहां आठवीं क्लास के एक बच्चे ने आत्महत्या करने की कोशिश की. इस बच्चे को उसकी क्लास के ही बच्चों ने धोखे से पेशाब पिला दी. उन बच्चों ने पीड़ित बच्चे की बॉटल में पानी की जगह पेशाब भर दी थी. जब बच्चे ने शिक्षक को ये बताया तो शिक्षक ने पेशाब पिलाने वाले बच्चों पर कार्रवाई करने की जगह उल्टा पीड़ित बच्चे को ही मारा. बच्चे को शिक्षक ने इसलिए मारा क्योंकि उसने पेशाब पिलाने की शिकायत की थी. जिन शिक्षकों से उम्मीद की जाती है कि वो बच्चों को अच्छी बातें या मोरल वैल्यूज़ सिखाएंगे, उन्हीं के मन में जब इतना भेदभाव है तो वे बच्चों को क्या सीखाते होंगे?
12 साल का बच्चा फिलहाल अस्पताल में भर्ती है. उसे कई फ्रैक्चर हुए हैं. वो अपने स्कूल की छत से कूद गया था. टीचर ने अगर उसकी बात समझी होती तो शायद वो आत्महत्या करने की कोशिश नहीं करता. पुलिस ने बताया कि टीचर को 7 अगस्त को गिरफ्तार कर लिया गया है.
बच्चे की मां ने बताया कि जब उनके बेटे ने पेशाब को पानी समझ कर पी लिया तो उसका मज़ाक बनाने लगे. बच्चे ने अपने क्लास टीचर से इस बात की शिकायत की. टीचर भी तथाकथित ऊंची जाति के हैं. उन्होंने पीड़ित बच्चे को ही थप्पड़ मारे और प्रिंसिपल के पास ले गए. बच्चे की मां को स्कूल बुलाया गया. उनके बच्चे और उनकी जाति को लेकर ताने मारे गए, उन्हें बुरा-भला कहा गया.
पंजाब का ‘अनुसूचित जाति कमीशन’ ये केस देख रहा है. कमीशन के मेंबर राजकुमार हंस स्कूल गए थे, बच्चे और उसके परिवार से मिले. उन्होंने 29 अगस्त तक मामले की पूरी रिपोर्ट मांगी है.
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