9 माह के बच्चे ने कोर्ट से पूछा, 'पब्लिक प्लेस में स्तनपान के लिए अलग कमरा क्यों नहीं?'

क्या नन्हे अवयान की ये याचिका भारत के कानून में बदलाव ला पाएगी?

अवयान अपनी मां नेहा रस्तोगी के साथ. फोटो- फेसबुक

मां भगवान है. मां अन्नपूर्णा है. सोशल मीडिया पर अच्छा दिखने के लिए मां का खूब इस्तेमाल करते हैं हम लोग. हमारे पीएम वगैरह भी. मगर इंडिया में मां अगर पब्लिक में बच्चे को दूध पिलाए, तो वो हो जाती है कामुकता का पात्र. लोग कहते हैं, पब्लिक कोई जगह है बच्चे को दूध पिलाने की.

यही वजह है कि 9 महीने के एक बच्चे ने कोर्ट में अपील की. ये कि सभी पब्लिक प्लेस में ब्रेस्टफीडिंग के लिए अलग से एक कमरा बनाया जाना चाहिए. सार्वजनिक जगहों पर बेबी फीडिंग रूम और चाइल्ड केयर रूम का निर्माण होना चाहिए. अब आप कहेंगे 9 महीने का बेबी कोर्ट कैसे जा सकता है. जा सकता है, अपने मां-बाप के सहारे.

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9 महीने के अवयान के मम्मी-पापा, नेहा और अनिमेष रस्तोगी वकील हैं. उन्होंने महिलाओं के हक़ में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. हुआ यूं कि जब बेबी अवयान 2 महीने का था, तो उनकी मां नेहा उन्हें लेकर दिल्ली से बेंगलुरु जा रही थीं. फ्लाइट 3 घंटे की थी. और बच्चे को फीड करने की जरूरत थी. ऐसे में उन्होंने मदद मांगी तो क्रू से कोई ख़ास सपोर्ट नहीं मिला. वो एकांत चाहती थीं. मगर जहाज भरा हुआ था.

उनसे उम्मीद की गई, कि वो बेबी को लेकर टॉयलेट में चली जाएं. मगर आप टॉयलेट में बैठकर खाना पसदं करेंगे क्या. कुल-मिलाकर नेहा को काफी तकलीफ हुई उस दिन. और उसके बाद जुलाई 2018 में उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की. उस वक्त अवयान 9 महीने का था.

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कोर्ट में पहली सुनवाई हुई. दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राज्य सरकार और नगर प्रशासन से जवाब मांगा. नेहा की याचिका पर एनडीएमसी (नई दिल्ली म्युनिसिपल कौंसिल) ने, 26 नवंबर को दिल्ली हाई कोर्ट में जवाब दिया था. एक सूचना दी थी. बताया था, कि दिल्ली में ब्रेस्टफीडिंग की सुविधा देने वाले दो टॉयलेट्स का निर्माण कराया गया है. एक शौचायल का निर्माण पार्लियामेंट स्ट्रीट में हुआ, तो दूसरे का कनॉट प्लेस में.

1_750x500_010819042000.jpgएनडीएमसी का जवाब.

नेहा का तर्क इस मामले में सटीक है:

'धूम्रपान के लिए हर पब्लिक प्लेज में अलग कमरा या जोन होता है. मगर बेबी को फीड कराने के लिए कोई कमरा नहीं होता. सिर्फ इसलिए कि वो शिशु है, क्या उसके पास एक स्वस्थ जीवन का अधिकार नहीं होना चाहिए.'

breasfeed_120418021041.jpgमां भगवान है. मां अन्नपूर्णा है. बस उसको दूध पिलाने की छूट नहीं है.

महंगे मॉल से लेकर बड़े-बड़े होटलों तक, कहीं भी बेबी फीडिंग एरिया नहीं दिखता. और पब्लिक प्लेस में खुले में बच्चे को दूध पिलाओ तो लोग ऐसे घूरते हैं जैसे नाच चल रहा हो.

इंडिया में कोई भी माइनर यानी 18 से उम्र का लड़का या लड़की अपने माता-पिता के ज़रिए कोर्ट में अपील कर सकते हैं. अवयान की अपील की अगली सुनवाई 13 फरवरी को है. क्या ये 9 माह बच्चा देश के कानून में कोई बड़ा बदलाव ला पाएगा?

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